क्या है श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली?
श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली एक साधन है ईश्वर से बात करने का, अपनी हाँ या ना वाली दुविधा (yes no question) से बाहर निकलने का। हम सभी के जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब हम ये निर्णय नहीं ले पाते कि हमें ये कोई काम करना चाहिए या नहीं। ये हाँ या ना वाली दुविधा हमें इतना परेशान कर देती है कि अधिकतर हम निर्णय लेने के बाद भी संशय से घिरे रहते हैं, सोचते रहते हैं कि हमने सही निर्णय लिया या नहीं।
ऐसे समय में मार्गदर्शन के लिए सबसे उत्तम रहता है कोई अनुभवी व्यक्ति, और उससे भी अधिक उत्तम है कोई ऐसा अनुभवी व्यक्ति जो आपका अपना हो और आपका भला चाहता हो, जो आपके बारे में और उन परिस्थितियों के बारे में सब कुछ जानता हो जिनसे आप गुज़र रहे हैं, ताकि उसे सब कुछ बताना या समझाना न पड़े, और ऐसा मार्गदर्शक उस ईश्वर से अधिक उत्तम और कौन हो सकता है। आपको आपके प्रश्नों का उत्तर देने और भविष्य से अवगत करवाने के लिए ही बनाई गई कई प्रश्नावलियाँ हैं।
यहाँ प्रस्तुत है श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली। जो उस परमपिता परमात्मा से वार्तालाप कर अपने प्रश्न का उत्तर पाने का एक साधन है। इस श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली के माध्यम से आप भगवान श्रीकृष्ण जी से अपना प्रश्न पूछ कर उत्तर पा सकते हैं।
प्रश्न पूछने के लिए नियम
प्रश्न पूछते समय मन में श्रद्धा और विश्वास रखें।
1 दिन में 3 से अधिक प्रश्न न पूछें।
प्रश्नावली की परीक्षा लेने के लिए प्रश्न न पूछें।
प्रश्न पूछने की विधि
अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए सबसे पहले अपने मन में भगवान श्रीकृष्ण जी का ध्यान करें। भगवान श्रीकृष्ण जी को प्रणाम करते हुए, कल्पना करें कि वे आपके समक्ष हैं। अपने मन में उनसे प्रश्न पूछें। अपने प्रश्न को स्पष्ट शब्दों में 3 बार दोहराएं। उसके बाद कल्पना करें कि भगवान श्रीकृष्ण जी आपके प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं। उस उत्तर को जानने के लिए श्रद्धापूर्वक नीचे दिए गए चित्र में किसी एक चौकोर खाने में अपनी उंगली या शलाका (सलाई) रख दें। इस चौकोर खाने में लिखे अक्षर को एक कागज़ पर लिख लें। उसके पश्चात् इससे आगे इसके 12वें चौकोर खाने में जो अक्षर है वो लिख लें। इस प्रकार हर 12वें खाने में दिए गए अक्षर को कागज़ पर लिखते जाएं ये एक चौपाई बन जाएगी। ये चौपाई ही आपके प्रश्न का उत्तर है। इस उत्तर को भगवान श्रीकृष्ण जी द्वारा किया गया मार्गदर्शन मानें। जय भगवान श्रीकृष्ण।
श्री कृष्ण शलाका प्रश्नावली

नीचे दी गयी चौपाइयों में से जो भी चौपाई आपके प्रश्न के उत्तर के रूप में आये। उस चौपाई के नीचे दिए गए उत्तर बटन पर क्लिक करके आप अपना उत्तर जान सकता हैं।
चौपाई 01.
तन मन कर जहं मेल न होई। बनत न काज कहत सब कोई।।
उत्तर
चौपाई 02.
मन अनुकूल सदा होइ जाई। विधि विधान में यह नहीं भाई ।।
उत्तर
चौपाई 03.
हरि इच्छा हरिसन नहीं पूछा। होइहहु अवसि मनोरथ छूछा।।
उत्तर
चौपाई 04.
होइहहु सफल सदा सब ठाहीं। नहीं तनिक संशय यहि माहीं।।
उत्तर
चौपाई 05.
असफल होइ निराश न होई। सफल होत संशय नहीं कोई।।
उत्तर
चौपाई 06.
भागि तुम्हारि न जाय बखानी। धन्य न कोउ तुम सम जग प्रानी।।
उत्तर
चौपाई 07.
विधि विधान कर उलटन हारा। नहिं समर्थ कोउ यहि संसारा।।
उत्तर
चौपाई 08.
किये सुकृत बहु पावत नाहीं। वह गति दीन आजु तेहि काहीं।।
उत्तर
चौपाई 09.
कह धर्मज जेहि पर तव दाया। सहजहिं सुलभ विजय यदुराया।।
उत्तर
चौपाई 10.
काम न होइ असंभव कोई। साहस करइ लहइ फल सोई।।
उत्तर
चौपाई 11.
मिलत न शांति कुसंगति माहीं। नित नव व्याधि ग्रसत नर काहीं।।
उत्तर
चौपाई 12.
मिलिहहिं तुमहि विजय रन माहीं। जीत न सकत इंद्रहू चाहीं।।
उत्तर
.
आपके प्रश्न का उत्तर
चौपाई 01: तन मन कर जहं मेल न होई। बनत न काज कहत सब कोई।।
अर्थ: भारतकाण्ड से ली गई इस चौपाई में गांधारी अपने पुत्र को समझाते हुए कहती है कि जहाँ तन और मन का मेल नहीं होता अर्थात जिस कार्य में तन और मन एक साथ नहीं लगते उस कार्य में सफलता नहीं मिलती।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम नहीं है। कार्य के सिद्ध होने में संदेह है, और इसका कारण है कार्य में पूरी तरह मन न लगना।
मार्गदर्शन: प्रश्न का उत्तर जान कर घबराएं नहीं, अपितु और भी अधिक परिश्रम करें। ऐसा कोई भी कार्य जिसे आप पूरे मन के साथ नहीं कर रहे, उसका सफल होना संभव नहीं है। इसलिए पूरा मन लगा कर कार्य करें। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 02: मन अनुकूल सदा होइ जाई। विधि विधान में यह नहीं भाई ।।
अर्थ: यह चौपाई द्वारकाकाण्ड से ली गई है। इस चौपाई में रुकमणी स्वयंवर में शिशुपाल के हार जाने पर जरासंध उसे समझाते हुए कहता है कि जैसा मन की इच्छा हो वैसा हमेशा हो जाये ऐसा विधि का विधान नहीं है।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल मध्यम है। कुछ अनिष्ट होने की आशंका तो नहीं किन्तु कार्य सिद्ध भी नहीं होगा।
मार्गदर्शन: परिश्रम ही सफलता का रहस्य है। परिश्रम करते रहें। इस कार्य के करने में आपका या किसी का कोई बुरा नहीं होगा, इसलिए मन लगा कर कार्य करते रहें। यदि इस कार्य में आपको सफलता नहीं भी मिलेगी तो भी सबक तो अवश्य ही मिलेगा। कार्य में सफलता नहीं मिलेगी ये सोच कर कार्य को यदि अनमने होकर करेंगे, पूरे मन से नहीं करेंगे तो असफलता का कारण आपका मन लगाकर कार्य न करना होगा और ये आपके लिए अच्छा नहीं है। जय श्रीकृष्ण!
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इस राधे कृष्ण के सुन्दर स्वरुप को अपने घर में स्थान दें
पीतल निर्मित: पीतल से निर्मित श्री राधे कृष्ण के इस स्वरूप को अति प्राचीन रूप दिया गया है। तांबे और जस्ता धातु के प्रयोग से इसका रूप सोने की भांति चमकदार दिखाई देता है। इसी कारण श्री राधे कृष्ण जी का ये स्वरुप नरम है और अपनी इसी विशेषता की वजह से इसमें दरारें नहीं पड़ सकती। पीतल के ध्वनिक गुणों ने ही इसे मूर्तियों के निर्माण के लिए सबसे बेहतर धातु बना दिया है।
अति प्राचीन रूप: खूबसूरत शिल्प के साथ-साथ सुनहरी रंग इसे एक प्राचीन और मूल्यवान रूप देता है। इसके शिल्प की बारीकी से पता चलता है कि इस किस प्रकार आँखों से दिल में उतरने के लिए उकेरा गया है, जिसमें अद्भुत मूर्तिकला और कालातीत सजावट पैटर्न शामिल है। यह पारंपरिक और समकालीन डिजाइनों का सही मिश्रण है।
गृह सजावट: पहली नज़र में ही ये दुर्लभ प्रतीत होता है। यह पीतल के रंग और बनावट में अद्वितीय है, इसलिए आपके घर के लिए एक आदर्श सजावट हो सकता है। इसे लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, डाइनिंग एरिया या बालकनी पास में रखा जा सकता है। अपने अंदरूनी हिस्सों की सुंदरता बढ़ाने के लिए इसे कार्यालयों और दुकानों में भी सजाया जा सकता है।
वजन और आकार: हर घर की सजावट की जरूरत के लिए यह एक बिल्कुल सही जोड़ी है। यह जोड़ी एक ऐसी कला है जो किसी व्यक्ति की पसंद और उसके विचारों के बारे में बहुत कुछ बताती है। इस खूबसूरत राधेकृष्ण की मूर्ति वजन का लगभग 63 किलोग्राम है। इस बहुरंगे राधेकृष्ण के स्वरुप का आकार 44 इंच ऊँचाई x 30 इंच लंबाई है।
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चौपाई 03: हरि इच्छा हरिसन नहीं पूछा। होइहहु अवसि मनोरथ छूछा।।
अर्थ: यह चौपाई स्वर्गारोहण काण्ड से ली गई है। इसमें बताया गया है कि ऋषियों ने बिना भगवान श्रीकृष्ण से पूछे शाप के प्रभाव से साम्ब के पेट से निकले मूसल को चूर्ण करके समुद्र में फेंक दिया था।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल बहुत बुरा है। इस कार्य की सिद्धि कभी नहीं होगी।
मार्गदर्शन: इस कार्य के लिए आपका परिश्रम करना व्यर्थ है। कुछ कार्यों के लिए प्रयास करना अपनी ऊर्जा को व्यर्थ में गंवाना ही होता है। इसलिए उत्तम यही है कि समय रहते उस कार्य से हट जाएं एवं अपनी ऊर्जा को किसी अन्य कार्य में लगाएं। समय न गंवाएं। गया हुआ समय वापिस नहीं आ सकता। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 04: होइहहु सफल सदा सब ठाहीं। नहीं तनिक संशय यहि माहीं।।
अर्थ: यह चौपाई ज्ञान काण्ड से ली गई है, जिसमें भीष्म राजनितिक ज्ञान दे रहे हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल उत्तम है। कार्य की सिद्धि अवश्य होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 05: असफल होइ निराश न होई। सफल होत संशय नहीं कोई।।
अर्थ: यह चौपाई ब्रजकाण्ड से ली गई है। यह चौपाई उस समय की है जब भगवान श्रीकृष्ण जी ने अपने सखाओं को समझाया था कि वे भोजन के लिए द्विज पत्नियों के पास जाएं।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल सामान्य है। फल तो मिलेगा किन्तु उसके लिए निरन्तर प्रयास करना होगा।
मार्गदर्शन: यदि असफलता दिखाई भी दे तो हार न मानें। निरन्तर प्रयास जारी रखें। सफलता अवश्य मिलेगी। यदि कार्य के बीच में हार मान लेंगे तो असफल होना तय है, किन्तु यदि आप दृढ़ निश्चय करके प्रयास जारी रखेंगे तो आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 06: भागि तुम्हारि न जाय बखानी। धन्य न कोउ तुम सम जग प्रानी।।
अर्थ: यह चौपाई भारतकाण्ड से ली गई है। इसमें सूर्य ग्रहण के अवसर पर इकट्ठे हुए राजा, महाराजा उग्रसेन की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुम बड़े भाग्यशाली हो, संसार का कोई भी प्राणी तुम्हारी भांति धन्य नहीं है।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम है कार्य की सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 07: विधि विधान कर उलटन हारा। नहिं समर्थ कोउ यहि संसारा।।
अर्थ: यह चौपाई मथुरा काण्ड से ली गई है। जब अक्रूर जी धृतराष्ट्र को समझाते हैं तो धृतराष्ट्र उनको उत्तर देते हुए ये पंक्तियाँ कहता है।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम नहीं है। कार्य की सिद्धि होने में संदेह है।
मार्गदर्शन: इस कार्य को करने के लिए एक बार फिर से विचार कर लें। यदि इस कार्य में आपका एवं दूसरों का भला है तो प्रयास पूरे मन के साथ जारी रखें, किन्तु यदि इस कार्य को करने में किसी का भला नहीं होगा तो इस कार्य को यहीं बंद कर दें। अपनी ऊर्जा एवं समय को व्यर्थ न गवाएं। जो उचित हो वही करें। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 08: किये सुकृत बहु पावत नाहीं। वह गति दीन आजु तेहि काहीं।।
अर्थ: यह चौपाई स्वर्गारोहण काण्ड से ली गई है। इस चौपाई में भगवान् श्रीकृष्ण अपने पैर के तलवे में बाण मारने वाले व्याध (शिकारी) को सद्गति दे रहे हैं।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल अति श्रेष्ठ है। कार्य की शीघ्र सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें। जय श्रीकृष्ण!
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चौपाई 09: कह धर्मज जेहि पर तव दाया। सहजहिं सुलभ विजय यदुराया।।
अर्थ: यह चौपाई भरतकाण्ड से ली गई है। भीष्म पितामह के रथ से गिर जाने पर धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण जी से ये पंक्तियाँ कहते हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल श्रेष्ठ है। कार्य की सिद्धी होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें। याद रहे इस प्रश्न का यह फल आपके इस समय किये जाने वाले प्रयास के कारण आया है। यदि आप भाग्य पर अत्यधिक भरोसा करके परिश्रम करना छोड़ देंगे तो कार्य सिद्ध कैसे होगा। प्रयास एवं परिश्रम जारी रखें। जय श्रीकृष्ण!
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आपके प्रश्न का उत्तर
चौपाई 10: काम न होइ असंभव कोई। साहस करइ लहइ फल सोई।।
अर्थ: यह चौपाई ब्रजकाण्ड से ली गई है। जब ब्रजवासी वृषभासुर से भयभीत हो जाते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण उनका साहस बढ़ाने और डर दूर करने के लिए ये पंक्तियाँ कहते हैं।
प्रश्न का फल: प्रश्न का फल उत्तम है। यदि साहसपूर्वक निरन्तर प्रयास करते रहे तभी कार्य की सिद्धि होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न के उत्तम फल को जानकर परिश्रम करना न छोड़ें, क्योंकि इस कार्य के सिद्ध होने का सबसे बड़ा कारण आपका साहसपूर्व किया गया प्रयास ही है। यदि आप साहस एवं सद्बुद्धि के साथ प्रयास करते रहेंगे तो अवश्य सफल होंगे। जय श्रीकृष्ण!
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आपके प्रश्न का उत्तर
चौपाई 11: मिलत न शांति कुसंगति माहीं। नित नव व्याधि ग्रसत नर काहीं।।
अर्थ: ये चौपाई भरतकाण्ड से ली गई है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण दुर्योधन को धृतराष्ट्र के दरबार में संधि के लिए समझा रहे हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल अत्यंत बुरा है। कार्य सिद्ध नहीं होगा और इसके करने में अनिष्ट की आशंका भी है।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न का फल अत्यंत बुरा है। उत्तम होगा इस कार्य को यहीं रोक दें। अनिष्ट से बचने का यही एक तरीका है और जितना कार्य अब तक कर चुके हैं उसे भी भूल जाएं। जय श्रीकृष्ण!
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आपके प्रश्न का उत्तर
चौपाई 12: मिलिहहिं तुमहि विजय रन माहीं। जीत न सकत इंद्रहू चाहीं।।
अर्थ: यह चौपाई उस समय की है जब युद्ध के लिए तैयार अर्जुन माँ भगवती दुर्गा की स्तुति करता है, तो माँ दुर्गा उसे आशीर्वाद देते हुए ये पंक्तियाँ कहती हैं।
प्रश्न का फल: इस प्रश्न का फल अत्यंत श्रेष्ठ है। कार्य की सिद्धि अवश्य होगी एवं शीघ्र होगी।
मार्गदर्शन: इस प्रश्न का फल जान कर कहीं आप प्रयास करना न छोड़ दें। कार्य के सिद्ध होने का कारण आपका अब तक का प्रयास तथा आपका शुभ समय है, प्रयास जारी रखें। इस प्रश्न का फल अत्यंत श्रेष्ठ होने का कारण कार्य के सिद्ध होने की सम्भावना अत्यधिक है। प्रयास जारी रखें। जय श्रीकृष्ण!
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