श्रद्धा से करें श्राद्ध, पाएं पूर्वजों का आशीर्वाद
होंगी जीवन की सभी बाधाएं दूर
एक कथा आती हैं कि भगवान श्री राम जी द्वारा जब अपने मृत पिता राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म किया गया। स्वर्गीय राजा दशरथ उस श्राद्ध कर्म को स्वीकार करने के लिए वहीं उपस्थित हो गए थे। जिन्हें देख कर माँ सीता भी एक और ओट में हो गई थीं। इस कथा पर विचार करें तो वास्तव में श्राद्ध कर्म का फल तो मिलता है।
यदि whatsapp और Facebook पर बैठे रहने वाले बुद्धिजीवियों को ऐसा लगता है कि श्राद्ध कर्म मात्र एक भ्रम है। इससे होने वाला नुकसान मात्र एक थाली भोजन है। क्या ये सच है कि अपने मृत माता-पिता, पितरों अर्थात पूर्वजों का पूजन करने से तथा उनके नाम से किसी ब्राह्मण को भोजन खिलाने से हमें कोई लाभ नहीं होगा? पहली सम्भावना ये कि इससे कोई लाभ नहीं होगा और दूसरी सम्भावना ये हैं कि इससे लाभ होगा। तो क्यों न पूरी श्रद्धा एवं नियम से श्राद्ध कर ही लें ताकि यदि लाभ होना हो तो उस लाभ से हम मात्र इसलिए वंचित न रह जाएं क्योंकि सोशल मीडिया पर तथाकथित बुद्धिजीवियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
साधारण श्राद्ध विधि
- प्रातः सूर्योदय से पहले उठ कर अपने स्वर्गीय परिजनों के चित्र को घर की दक्षिणी दीवार पर टांग दें, या दक्षिणी दिशा में किसी स्थान को साफ़ करके मंदिर की तरह सजाकर वहां इन चित्रों को रखें।
- इन चित्रों को अच्छे से साफ़ करके गंगा जल से स्नान करवाकर पोंछ लें, तथा उन पर वस्त्र ओढ़ा दें। (गमछा रुमाल इत्यादि भी ओढ़ सकते हैं।)
- इसके पश्चात् चन्दन का तिलक लगा कर फूलों का हार पहनाएं।
- धूप तथा दिया जलाएं फूल चढ़ाएं।
- इसके पश्चात् घर में श्राद्ध के लिए बना खाना, एक थाली में परोसें। एक गिलास में जल लेकर उसमें थोड़े तिल डाल लें। इसे अपने स्वर्गीय परिजनों के चित्र के आगे रख दें। दायें हाथ में तिल वाला जल लेकर विनती करें कि…
“हे ईश्वर हे मेरे परमपिता परमात्मा मैं ……… (अपना नाम बोलें) अपने स्वर्गीय पिता ……… (अपने पिता का नाम बोलें) को यह भोजन समर्पित करता हूँ। कृपया ये भोजन मेरे स्वर्गीय पिता या पितरो तक पहुंचाएं।”
इसके पश्चात विनती करें कि…
“हे मेरे स्वर्गीय पिता ……… (अपने पिता का नाम बोलें) जी, मैं आपको यह भोजन समर्पित कर रहा हूँ, कृपया इसे स्वीकार करें, और मेरी सभी भूलों को क्षमा करें। मुझे उत्तम संतान, वंश वृद्धि, सुख, शांति, समृधि, संपत्ति, सम्पन्नता, सद्बुद्धि एवं सौभाग्य का आशीर्वाद दें।”
इसके पश्चात् उन्हें प्रणाम करें। अब इस थाली में अपने सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा रख कर इसे मंदिर में दे आयें।
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श्राद्ध के प्रकार-
पितरों की आराधना दो प्रकार से की जाती है:
1. तर्पण करना
पहला जल और तिल को मिलाकर पितरों के नाम से जल तर्पण करना। इसको तिलांजलि भी कहते हैं।
2. पिण्डदान करना
दूसरी विधि है पिण्डदान करना। इसमें हवन कुंड में शुद्ध घी, अन्न, आदि वस्तुएं अर्पित करके मंत्रोच्चारण समेत पितरों के लिए हवन कर्म किए जाते हैं। उन्हें आटे के पिण्ड बनाकर दान किये जाते हैं। इसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं। इसके लिए आपको किसी ब्राह्मण की आवश्यकता पड़ती है।
अतः धर्म को श्रद्धा की नींव पर रखा गया है। ऐसे में पितरों के प्रति श्रद्धा और आदर का भाव रखना चाहिए। ऐसा कई धर्मों में मिलता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध करने से होता है ऐसा
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि, हमारी श्रद्धा तथा पूजन से संतुष्ट होकर हमारे पितृगण आयु, संतान, यश, कीर्ति, पुष्टिबल, सुख, धन-धान्य तथा वैभव इत्यादि प्रदान करते हैं। इसलिए श्राद्ध को जीवन के कर्तव्य के रूप में करने को कहा गया है। अतः पितरों को जल एक पवित्र स्थान पर तर्पण करना चाहिए। जो भी मनुष्य श्राद्ध में अपने पितरों को तृप्त करता है। वह पितृ ऋण तथा दोषों से मुक्त हो कर सीधा ब्रह्म लोक को जाता है।
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श्राद्ध के निम्न प्रकार हैं :-
- नित्य श्राद्ध
- शुद्धि श्राद्ध
- नैमितिक श्राद्ध
- कर्मांग श्राद्ध
- काम्य श्राद्ध
- दैविक श्राद्ध
- वृद्धि श्राद्ध
- यात्रा श्राद्ध
- सपिंडन श्राद्ध
- पुष्टि श्राद्ध
- गोष्ठ श्राद्ध
ऐसे करें श्राद्ध (श्राद्ध की विधि)
1. पिण्डदान या ब्राह्मणों को भोजन करवाना
प्रायः श्राद्ध करने की दो विधियां हैं। पहला पिण्डदान तथा दूसरा ब्राह्मणों को भोजन करवाना। नगरों में पिण्डदान करवाना कठिन हो जाता है। इसलिए लोग अधिकतर ब्राह्मणों को भोजन करवाने का ही विकल्प चुनते हैं। इसमें भी कुछ लोग तो ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन करवाते हैं एवं उन्हें दान दक्षिणा देते हैं। कुछ लोग अपने घर के पास के मंदिर में जाकर भोजन एवं दान दक्षिणा दे देते हैं। आप अपनी सुविधा अनुसार श्राद्ध करने की विधि चुन सकते हैं।
2. ब्राह्मणों को भोजन करवाने से पहले ये अवश्य करें
शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों के लिए भोजन परोसने से पहले 5 लोगों के लिए भोजन का भाग अवश्य निकालें। गाय माता, कौआ, कुत्ता, चींटी एवं भगवान् भोग के लिए पहले भोजन निकाल कर रख लें।
3. तर्पण अवश्य करें
अपने पितरों की प्यास बुझाने के लिए उन्हें जल अवश्य अर्पित करें। पितरों को तिल मिला हुआ जल अर्पण करें। यही तर्पण कहलाता है। ये पिण्डदान के समय किया जाता है, किन्तु यदि आप पिण्डदान नहीं कर रहे हैं तो आप इसे अलग से भी कर सकते हैं।
4. ब्राह्मणों को दान
ब्राह्मणों को फल एवं वस्त्रादि भी दान दे सकते हैं।
श्राद्ध पक्ष के दिनों में प्रतिदिन करें ये काम
- प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर दक्षिण दिशा की और मुँह करके अपने पूर्वजों को जल दें।
- प्रतिदिन करें इस मंत्र का जाप “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- प्रतिदिन सुबह एवं शाम को घर में पूजा-पाठ अवश्य करें।
- प्रतिदिन अपने जीवित माता पिता का आशीर्वाद लें।
इन मन्त्रों का करें जप
- जैसे आपको ऊपर भी मैंने बता दिया है तो आप प्रतिदिन इस मंत्र का जाप अवश्य करें “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- श्राद्ध करते समय श्राद्ध से पहले एवं श्राद्ध समाप्त होने पर इस मंत्र का जप 3 बार करें, “देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च, नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः” “इस मंत्र का अर्थ है कि सभी देवताओं, मेरे पितरों, महायोगियों, स्वधा तथा स्वाहा को मेरा नमस्कार है।”
- श्राद्ध करते समय इस मंत्र का जप करना चाहिए। इससे व्यक्ति दीर्घायु एवं निरोग रहता है। उत्तम संतान की प्राप्ति होती है तथा सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। मंत्र है, “श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छादम्”
यहाँ देखें: पितृ पक्ष या श्राद्ध की तिथियाँ एवं समय
क्यों किया जाता है श्राद्ध?
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कुछ इच्छाएं होती हैं, और वह पूर्ण जीवन काल अपनी इच्छाओं से अतृप्त रहता है। किंतु उसकी सारी इच्छाएं पूरी हों ऐसा नहीं हो पाता है। यदि उसकी कोई तीव्र इच्छा हो, पूरी न हो पाए और उसकी मृत्यु हो जाये तो उसकी आत्मा इस संसार से अतृप्त चली जाती है। आत्मा पर बोझ रह जाता है। आत्मा पर यह बोझ किसी भी कमी के कारण हो सकता है। ऐसा मनुष्य मरते समय अधिक दुख का अनुभव करता है। ऐसी आत्मा ना तो परमात्मा में मिलती है और ना ही नया गर्भ धारण करती है। अर्थात वह पूर्ण रूप से मुक्त नहीं हो पाती है। ऐसा माना जाता है कि, हमारे पितृ भी अतृप्त आत्मा हो सकते हैं। ऐसे असंतुष्ट पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए उनकी संतानों का कर्तव्य होता है कि वे उनका श्राद्ध करें।
हमारे शास्त्रों में पितृ पक्ष का दिन इसलिए रखा गया है, ताकि इन दिनों में हम अपने पूर्वजों के लिए पूजा-पाठ आदि के द्वारा ऐसा कार्य करें, जिससे उनको पूर्ण रुप से मुक्ति मिल सके। इसलिए व्यक्ति को श्राद्ध करके पितरों को मुक्ति दिलानी चाहिए, जिससे वह इस योनि से मुक्त हो सके और नया जीवन प्राप्त कर सके।
पितृपक्ष साल के कुछ ऐसे दिन होते हैं, जिनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। ऐसा माना जाता है कि उन दिनों मृत आत्माएं इस पृथ्वी पर उतरकर भ्रमण करती हैं। इसलिए श्राद्ध पक्ष पितरों के लिए श्रद्धा प्रकट करने का समय होता है।
अंत में, जहां पर अपने पितरों के श्राद्ध के कार्यक्रम किए जाते हैं, उस परिवार में बुद्धि, प्रेम, प्रीति और लक्ष्मी का स्थाई रूप से निवास होता है। इन सब कीर्तिमान को रहते हुए किसी भी चीज की कमी नहीं होती है। पितरों के प्रति श्राद्ध, सम्मान, सत्कार, संस्कार और आदर का फल, शुभ होता है।
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