भारत देश की धरती पर अलग-अलग धर्म, कला एवं संस्कृति के अनूठे रंग बिखरे हुए हैं। यहाँ पर हर धर्म और जाति के लोग अपने त्यौहारों से इस देश की मिटटी को नित ही नए रंगों से रंगते रहते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है ‘होली’ जिसका कि हिन्दू धर्म से बड़ा ही अटूट सम्बन्ध है। इस त्यौहार का एक रूप के विषय में तो आप सब जानते ही हैं। सिख युद्धकला गतका और होली का आपस में बड़ा ही गहरा सम्बन्ध है। आईये इस विषय में कुछ जानकारी लें।
होली का एक अनोखा रूप
आईये अब हम आपको इस त्यौहार का एक नया और नवीनतम रूप दिखाते हैं जो कि केवल ‘सिख-धर्म’ में ही देखने को मिलता है। सिख धर्म में होली के इस त्यौहार को रंगों से नहीं मनाया जाता, बल्कि इस त्यौहार के द्वारा समाज में वीरता और साहस का रंग भरा जाता है। गतका और होली का आपस में जो सम्बन्ध है वह हमारी संस्कृति के एक और रूप को दर्शाता है। सिख धर्म में इस त्यौहार को एक अलग नाम से जाना जाता है और वो नाम है ‘होला महल्ला’। यह त्यौहार गतका की शस्त्रकला को प्रदर्शित करता हुआ ‘कौमी-एकता’ का एक सशक्त प्रतीक है। ‘होला महल्ला’ नाम का यह पर्व श्री आनंदपुर साहिब, पंजाब में एक विशाल मेले एवं शोभा यात्रा के रूप में मनाया जाता है। इस मेले में शस्त्रकला, घुड़सवारी एवं सैन्यबल के पराकर्म का अदभुत प्रदर्शन किया जाता है।
‘होला महल्ला’ का इतिहास
‘होला महल्ला’ का त्यौहार सिख धर्म से और इसके विश्वास से गहरे तक जुड़ा हुआ है। इस पर्व की शुरुआत दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री आनंदपुर साहिब में केशगढ़ साहिब के स्थान पर सम्वत 1757 चैत्र की पहली तारीख को की थी । यह त्यौहार होली से अगले दिन पंजाब के अलग-अलग नगरों एवं सम्पूर्ण भारत देश में मनाया जाता है।
यहाँ पढ़ें: प्राचीन भारतीय अदभुत युद्ध कलाओं का इतिहास
गुरु गोबिंद सिंह जी ये त्योहार क्यों शुरू किया?
आईये हम उन तथ्यों को जान लें कि गुरु गोबिंद सिंह जी को इस त्यौहार को नया रूप क्यों देना पड़ा। वास्तव में सन 1700 ईसवी का वह समय जब विदेशी हुकूमतें अर्थात मुग़ल लुटेरे इस देश को लूटकर सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमज़ोर कर रहे थे। और इसके विपरीत हमारी ही मातृभूमि के कुछ ‘गद्दार लोग’ मुग़लों का साथ देकर हमारी ही संस्कृति को नष्ट कर रहे थे। उस समय इस अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए शक्ति और वीरता की आवश्यकता थी। उस समय कमज़ोर पड़ चुके समाज के सभी वर्गों में शक्ति फूंकने के लिए सिखों के गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस पर्व की शुरुआत की। यह ऐसा पर्व बना जिसमें वीर योद्धा अपनी वीरता का प्रदर्शन करते। शस्त्रकला, घुड़सवारी एवं सैन्यबल के पराकर्म का अदभुत प्रदर्शन देख कर देखने वाले भी जोश और आत्मविश्वास से भर जाते। समाज में निर्भयता, आत्मविश्वास एवं शत्रुओं में भय पैदा करने के उद्देश्य से ही उन्होंने इस त्यौहार की शुरुआत की।
‘गतका-शस्त्रकला’ का प्रयोग समाज के लोगों को निर्भीक बनाने एवं सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए किया गया। ‘होला महल्ला’ के दिन श्री आनंदपुर साहिब में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के संचालन में सिख फ़ौज के सिपाही एवं शस्त्रकला के निपुण खिलाड़यों के द्वारा गतका के करतबों का प्रदर्शन किया जाता था। इसमें एक खेल कि भांति दो दल बनाये जाते थे, दोनों दलों में युद्ध करवाया जाता था। दोनों एक प्रकार के ‘नक़ली-युद्ध’ के द्वारा एक निश्चित जगह पर विजय प्राप्ति के लिए युद्ध करते थे। जो दल गतका का बेहतर प्रदर्शन करते हुए युद्ध में विजय प्राप्त करता था, उसे गुरूजी द्वारा ‘वीरता-पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया जाता था।
‘होला महल्ला’ का शाब्दिक अर्थ
‘होला-महल्ला’ इस शब्द के यदि अर्थ निकालें तो ‘होला’ शब्द अरबी भाषा के एक शब्द ‘हूल’ से बना है जिसका अर्थ है अच्छे कार्यों के लिए जूझना और वीरता के साथ निरंतर संघर्ष करना और ‘महल्ला’ शब्द का अर्थ है कि जब संघर्ष के उपरांत विजय प्राप्त होती है तो जिस स्थान पर विजय प्राप्त हो उसे (पंजाबी भाषा का एक शब्द) ‘महल्ला’ अर्थात विजय का स्थान, जीत की निशानी (या वह स्थान जहाँ विजय के बाद कब्ज़ा किया जा सके) कह कर सम्बोधित किया जाता है।
यहाँ पढ़ें: युद्धकला गतका का क्या सम्बन्ध है सिख इतिहास से?
आजकल कैसे मनाया जाता है ‘होला-महल्ला’
‘होला-महल्ला’ का ये त्योहार आजकल भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन एक स्थान से दूसरे स्थान तक विशाल शोभा-यात्रा निकाली जाती है। इस शोभा-यात्रा में बड़ी भारी संख्या में निहंग सिंह (सिख सेना के संत सिपाही) घोड़ों पर सवार होकर, नगाड़ों की गूँज के साथ तीर-तलवार, बरछा और अन्य प्रकार के पारम्परिक शस्त्रों से सुसज्जित होकर ‘गतका’ का प्रदर्शन करते हुए चलते हैं और दूसरे स्थान पर पहुँच कर भी अलग-अलग दलों के द्वारा शस्त्रकला का प्रदर्शन किया जाता है। वहां पर विशाल पंडाल लगाया जाता है जहाँ पर ‘गुरबाणी-कीर्तन’ एवं ‘लंगर’ का उचित प्रबंध किया जाता है। इस पंडाल में गुरबाणी कीर्तन के अलावा वीर-रस के कवियों द्वारा वीरता की गाथाएं भी गाई जाती हैं। इस तरह ‘होला-महल्ला’ श्री आनंदपुर साहिब का एक मशहूर मेला है जोकि समाज में मनुष्य की बराबरी, आज़ादी एवं सामाजिक मूल्यों को जीवंत रखने के लिए प्रेरित करता हुआ देश एवं समाज के लिए कुछ करने, मर मिटने की भी प्रेरणा देता है। इस प्रकार से गतका और होली का आपस में एक ऐसा अनूठा सम्बन्ध है जो कि हमारी भारतीय संस्कृति के एक अनोखे रंग को दर्शाता है।