आखिर क्यों उठा यह प्रश्न कि देवताओं में कौन है श्रेष्ठ?
भगवान् गणेश जी को प्रथम पूजनीक माना गया है। ऐसा तो हम सभी जानते हैं, कि किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व भगवान गणेश जी का ही सबसे पहले पूजन किया जाता है। लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है। आज हम आपको इस विषय के इतिहास से अवगत कराने जा रहे हैं। सनातन मत में दिए गए पुराणों की कथाओं के अनुसार जब परमात्मा ने सृष्टि का सृजन किया। उसके पश्चात उसने अलग-अलग देवी एवं देवताओं को सृष्टि को चलाने हेतु अलग-अलग कार्य सौंपे। इसके बाद उन सभी देवी-देवताओं में यह होड सी लग गयी, कि कौन है जो हम सब में श्रेष्ठ है? और सबसे पहले भूलोक पर किस देव की पूजा की जाए। सभी में विवाद सा उत्पन्न हो गया, और कोई भी निर्णय नहीं निकल सका?
सभी देवता पहुंचे महादेव के पास:
इस विषय में दो अलग-अलग मत पुराणों के अनुसार बताये गये हैं। एक मत के अनुसार इस विवाद का हल निकालने के लिए महादेव के आदेशानुसार एक प्रतियोगिता देवताओं के बीच की गयी। किन्तु एक दूसरा मत यह है कि यह प्रतियोगिता केवल महादेव एवं माता पार्वती के दोनों पुत्रों भगवान् गणेश जी एवं कार्तिकेय जी के बीच हुई थी। लेकिन दोनों ही मत एक ही बात को साबित करते हैं की यह प्रतिस्प्रधा केवल देवों में श्रेष्ठ कौन है, को सिद्ध करने हेतु हुई थी।
महादेव ने बताया उपाय:
भगवान् शंकर ने सभी देवताओं को आदेश दिया कि जो भी देवता तीनो लोकों की परिक्रमा करके सर्वप्रथम कैलाश पर्वत पर लौटेगा। उसीको प्रथम पूजनीक माना जाएगा। सभी देवों ने भगवान् शिव को प्रणाम किया और अपने-अपने वाहन पर सवार होकर पृथ्वीलोक की परिक्रमा के लिए निकल पड़े।
गणेश जी की उत्पत्ति और गणेश चतुर्थी का महत्व
गणेश जी ने की वास्तविक परिक्रमा:
जब सारे देवता भूलोक की परिकर्मा करने के लिए प्रस्थान कर चुके थे। उस समय भगवान् गणेश जी ने अपने वाहन मूषक पर सवार होकर भगवान् शंकर और माता पार्वती की सात परिकर्मा की। उसके बाद अपने माता पिता को प्रणाम करके वहीँ ध्यान मग्न होकर तपस्या में लीन हो गए। काफी देर के बाद जब महादेव ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने गणेश जी को अपने चरणों में आसन लगा कर बैठे हुए देखा।
सभी देवता हुए आश्चर्य चकित?
कुछ समय के पश्चात जब सभी देवता एवं शिव पुत्र कार्तिकेय भी भूलोक की परिकर्मा से वापिस लौटे। उन्होंने भगवान् गणेश जी को वहीँ अपने आसन पर विराजमान देखा। पहले तो वह बहुत ही आश्चर्य चकित हुए, कि गणेश जी तो कहीं गए ही नहीं। इसलिए यह तो इस प्रतियोगिता में अवश्य ही पराजित हो चुके हैं। सभी देवता मन ही मन अति प्रसन्न हुए, क्योंकि उन्हें यह प्रतीत हुआ कि महादेव के पुत्र तो अब कभी भी प्रथम पूजा के लिए उत्तम नहीं बन सकते। क्योंकि उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन तो किया ही नहीं।
तब महादेव ने की यह घोषणा:
तत्पश्चात महादेव ने इस देव प्रतियोगिता का विजयी कौन है? यह घोषणा की। सभी देवता बहुत खुश थे कि उनमें से ही कोई भाग्यशाली है जो कि इस प्रतियोगिता का विजेता है। किन्तु जब महादेव ने यह यह बताया कि इस प्रतियोगिता का विजेता उनका पुत्र गणेश है। यह जानकर सभी देवता हैरान एवं क्रोधित भी हो उठे। उन्होंने महादेव से अनुरोध किया कि उनकी आज्ञा के अनुसार वह सभी पूरी सृष्टि अर्थात भूलोक की परिक्रमा पूर्ण करके लौटे हैं। गणेश जी तो कहीं भी गए नहीं, तो वह इस प्रतियोगिता के विजेता कैसे हो सकते हैं। भगवान् भोलेनाथ जी ने यह कहा की आप में से कुछ देवगण पुनह पृथ्वी पर जाएँ, और जिस भी मार्ग से वह गए हो उस मार्ग पर ध्यान पूर्वक देखें। उसके बाद मुझे आकर बताएं की उन्होंने क्या देखा।
भगवान् श्री गणेश जी की सवारी मूषक
देवताओं ने माना भगवान् भोलेनाथ का आदेश:
कुछ देवता तुरंत एक बार फिर से तीनो लोकों की परिकर्मा पर चल पड़े। उन्होंने अपने मार्ग को ध्यान से देखा तो उन्हें हर जगह पर भगवान् गणेश जी के वाहन मूषक के पद चिन्हों के निशान दिखाई दिए। वह देवता बहुत ही आश्चर्य चकित हुए, कि जिस जगह से होकर वह गए थे। उन्हें हर जगह पर भगवान् गणेश जी के मूषक के पद चिन्ह दिखाई दिए। किन्तु महादेव का आदेश तो मानना अनिवार्य था। अंततः वह सभी देवता तुरंत कैलाश पर्वत पर लौटे और महादेव के चरणों में गिरकर माफ़ी मांगी। वह बोले, हे महादेव हमसे भूल हुई कि हमने आपके पुत्र भगवान् गणेश को बुरा-भला कहा। किन्तु अब आप ही बताएं कि आपकी इस लीला का रहस्य क्या है ?
इसलिए हैं भगवान् गणेश प्रथम पूजनीक :
तत्पश्चात महादेव ने यह कहा कि हमने आप सभी देवों से कहा था कि आप सभी सारी सृष्टि की परिकर्मा करके लौटे। किन्तु आपने गणेश को परिकर्मा करते हुए नहीं देखा। लेकिन तब भी मैंने उसे ही विजेता बना दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गणेश ने अपने माता-पिता को सारी सृष्टि के समान आदर देते हुए, उनकी ही परिकर्मा कर डाली। माता-पिता की यही परिकर्मा से उन्होंने यह साबित किया की उनका सारा संसार उनके माता-पिता ही हैं। उनका यह भाव उनकी नम्रता उन्हें देवों में सबसे श्रेष्ठ होने का अधिकारी मानती है। साथ ही महादेव ने यह आदेश दिया कि आज से सम्पूर्ण सृष्टि में कोई भी कार्य जब आरम्भ किया जाए। उस समय सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा की जायेगी। ऐसा किये बिना कोई भी शुभ कार्य पूर्ण नहीं माना जाएगा। तभी से सबसे पहले भगवान् गणेश जी की ही पूजा की जाती है।